नमस्कार दोस्तों आप सभी को स्वागत है आज का इस टॉपिक के साथ जिसमे हमलोग जानेंगे की ।मरने के बाद आत्मा का क्या होता है गरुड़ पुराण।मरने के बाद आत्मा का क्या होता है दिखाइए।मृत्यु के बाद आत्मा कितने दिन धरती पर रहती है। दोस्तो अगर आप भी जानना चाहते हैं तो इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़े
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मरने के बाद आत्मा का क्या होता है बताइए !मृत्यु के बाद आत्मा कितने दिन धरती पर रहती है
दोस्तो गरुड़ पुराण में उल्लेखित है कि मृत्यु के बाद आत्मा को यमदूत केवल 24 घंटों के लिए ले जाते हैं और इन 24 घंटों के दौरान आत्मा को दिखाया जाता है कि उसने कितने पाप और कितने पूर्ण किए हैं।
इसके बाद आत्मा को फिर उसी घर में छोड़ दिया जाता है। जहा उसने शरीर का त्याग किया था। इसके बाद 13 दिन तक आत्मा वहीं रहती है । आत्मा को 13 दिन के बाद फिर ले जाया जाता है।
पुराणों के अनुसार जब भी किसी मनुष्य की मृत्यु होती है और आत्मा शरीर को त्याग कर यात्रा प्रारंभ करती है तो इस दौरान उसे तीन प्रकार के मार्ग मिलते हैं
जो कि क्रम से है
- अच्छी मार्ग
- धूम मार्ग
- उत्पत्ति विनाश मार्ग
जो की 13 दिन बाद मिलता है जो उस व्यक्ति द्वारा तय किए गए कर्मों के अनुसार होता है कि अच्छी मार्ग ब्रह्मलोक और देव लोग । यात्रा के लिए होता है वही धूम मार्ग पृथ्वी लोक की यात्रा पर ले जाता है और उत्पत्ति विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए होता है।
इस तरह आत्मा अलग-अलग मार्ग में चली जाती है। यहां कर्मों के अनुसार और यमराज द्वारा तय किए गए समय तक रहती है। यजुर्वेद में कहा गया है कि शरीर छोड़ने के पश्चात जिनोने तप ध्यान किया है यो ब्राह्मण लोग चले जाते हैं, अर्थात ब्रह्मांड लीन हो जाते हैं। कुछ सत्कर्म करने वाले भक्तजन स्वर्ग चले जाते हैं स्वर्ग अर्थात यो देव बन जाते हैं
और राक्षसी कर्म करने वाले कुछ प्रेत यानी की अनंत काल तक भटकते रहते हैं और कुछ पुणे धरती पर जन्म नहीं लेते हैं। जन्म लेने वालों में जरूरी नहीं है कि वह मनुष्य योनि में ही जन्म ले। इससे पूर्व यह सभी पृथ्वी लोक में रहते हैं। वही उसका न्याय होता है कि आत्मा 17 दिन तक यात्रा। करने के पश्चात 18 दिन यमपुरी पहुंचती है।
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अच्छे कर्म करने से क्या होता है
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि जो लोग अच्छे कर्म करते हैं, गर्मियों में प्यासी व्यक्तियों को पानी पिलाते हैं और वर्षा ऋतु में मनुष्य को शरण देते हैं । माता-पिता की सेवा करते हैं। लोगों से मधुर वाणी में बात करते हैं। लोगों के लिए शुद्ध विचार रखते हैं। किसी को कास्ट नहीं पहुंचाते हैं। वेदों का अध्ययन करते हैं। ऐसे लोगों को कभी कष्ट का सामना करना ही नहीं पड़ता और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
गरूड़ पुराण में यमपुरी के इस रास्ते में बेहतरी नदी का उल्लेख मिलता है। बेहतरनी नदी निष्ठा और रक्त से भरी हुई है जिसने गाय का दान किया है। वह इस बेतरनी नदी को आसानी से पार कर यमलोक पहुंच जाता है और इसमें गाय का दान नहीं किया। इस नदी में वह डूबते रहते हैं और यमदूत उन्हें निकाल कर धक्का देते रहते हैं
ओमपुरी पहुंचने के बाद आत्मा पुष्फुल का नाम एक नदी के पास पहुंच जाती है, जिसमें कमल के फूल खिले रहते हैं। इसी नदी के किनारे एक छायादार वृक्ष होता है जहां आत्मा थोड़ी देर विश्राम करती है। यहीं पर उसके पुत्रों या परिजनों द्वारा किए गए पिंडदान और तर्पण का भोजन मिलता है। जिससे उसमें शक्ति का संचार हो जाता है।
यमलोक में चार द्वार होते हैं
- यमलोक के चार द्वार हैं। चार मुख्य द्वारों में से दक्षिण के द्वार से पापियों का प्रवेश होता है। यम नियम का पालन नहीं करने वाले निश्चित ही इस द्वार में प्रवेश करके कम से कम 100 वर्षों तक भटकते रहते हैं
जिन्होंने दान पूर्ण किया हो, धर्म का रक्षा की हो और तीर्थों में प्राण त्यागे हो। उत्तर द्वार से वही आत्मा प्रवेश करती है जिसने जीवन में माता-पिता की खूब सेवा की हो हमेशा। सत्य बोलता रहा हूं और हमेशा मन वचन कर्म अहिंसाक हो पूर्व के द्वार से उस आत्मा का प्रवेश होता है।
जो योगी रिद्धि, सिद्धि और समृद्धि है। इसे स्वर्ग का द्वार कहते हैं। इस द्वार में प्रवेश करते ही आत्मा का धान धर्म देव अप्सराएं स्वागत करती है । माना जाता है कि जब कोई व्यक्ति मरता है तो सबसे पहले वह गहरी नींद के हालात में ऊपर उटने लगता है। जब आंखें खुलती है, तो स्वयं स्थिति को समझ नहीं पाता है। मरने के 12 दिन बाद यमलोग के लिए उसकी यात्रा शुरू होती है। वह हवा में सोता ही उड़ता जाता है जहां रुकावट होती है, वही उसी अमदुत नजर आते हैं। उसे ऊपर की ओर ले जाते हैं। आत्माओं की मरने की दिशा उसके कर्म और मरने की तिथि अनुसार तय होती है
जैसे कृष्ण पक्ष में दे छोड़ दिया तो उस काल दक्षिण और उसके पास के द्वार खुलने लगते हैं और आदि शुक्ल पक्ष में छोड़ी तो उतार और उसके आसपास के द्वार खुलते हैं
लेकिन जब कोई नियम काम नहीं करता, जबकि व्यक्ति पाप से भरा हो। शुक्ल में मर कर भी वो दक्षिण दिशा में गमन करता है। इसके अलावा उत्तरायण और दक्षिणायन का सबसे ज्यादा महत्व होता है।
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