Thursday 1 December 2022

बिहार में 2023 में शिवरात्रि कब है। 2023 में शिवरात्रि कब है। 2023 में शिवरात्रि कब पड़ रहा है।

  मस्कार दोस्तों आप सभी को स्वागत है आज का इस New Post  के साथ जिसका title है।2023 में महाशिवरात्रि कब है।2023 में महाशिवरात्रि किस तारीख को पड़ेगी।दोस्तो अगर आप भी जानना चाहते हैं तो इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढे।




बिहार में 2023 में शिवरात्रि कब है। 2023 में शिवरात्रि कब है। 2023 में शिवरात्रि कब पड़ रहा है।

बिहार में शिवरात्रि कब है 2023? 2023 में महाशिवरात्रि व्रत कब है? 2023 ki shivratri kab hai 2023 mein mahashivratri kab hai


दोस्तों, शिवरात्रि आदि देव भगवान शिव और मां शक्ति के मिलन का महापर्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाने वाला यह पर्व शिव भक्तों को निश्चित फल, सौभाग्य समृद्धि, संतान व आरोग्य प्रदान करने वाला है तो चलिए इस पोस्ट में हम जानते हैं कि साल 2022 में महाशिवरात्रि का पर्व कब मनाया जाएगा और इसकी पूजा का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा और व्रत पारण का शुभ समय क्या है। साथ ही साथ हम जानेंगे। महाशिवरात्रि की संपूर्ण पूजा विधि के बारे में। लेकिन पोस्ट शुरू करने से पहले आप से रिक्वेस्ट है कि अगर अभी तक आपने हमारे चैनल। सब्सक्राइब नहीं किया तो जल्दी से सब्सक्राइब कर ले अब सुरु करते है । दोस्तों हिंदू धर्म में सारे देवी देवताओं में भगवान शिव शंकर सबसे लोकप्रिय हैं। यह देवों के देव महादेव है। भगवान शिव बहुत ही सरल स्वभाव के देवता माने गए हैं। इसीलिए इन्हें भोले भंडारी के नाम से भी पुकारा जाता है। अतः इन्हें सरल तरीके से नीचे प्रसन्न किया जा सकता है।

 

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दोस्तों महाशिवरात्रि का व्रत शिव भक्तों के लिए बहुत ही कल्याणकारी और मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है। महाशिवरात्रि के दिन उपवास का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन भोलेनाथ की शादी मां शक्ति के संग हुए थे। जिस कारण भक्तों द्वारा रात्रि के समय भगवान शिव की बारात निकाली जाती है और शिव भक्त इस दिन रात्रि जागरण भी करते हैं। वैसे तो इस महापर्व के बारे में कई पौराणिक कथाएं मांगने हैं, परंतु हिंदू ग्रंथ शिवपुराण की बिंदेश्वर संहिता के अनुसार इसी पावन की थी कि भगवान शिव का निराकार स्वरूप प्रति शिवलिंग का पूजन सर्वप्रथम ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु जी के द्वारा हुआ। जिस कारण इस तिथि को शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। दोस्तों महाशिवरात्रि का व्रत महिलाओं के लिए विशेष लाभकारी है। कुंवारी लड़कियां इस दिन शिवजी को प्रसन्न करके मनचाही प्राप्त कर सकते हैं और शादीशुदा महिलाएं व्रत करके शिवजी से अपने पति की लंबी आयु का वरदान प्राप्त कर सकती हैं और उनकी सफलता की कामना भी करती है और जिन महिलाओं को संतान की प्राप्ति नहीं हुई है वह 20 दिन शिवजी से संतान सुख का आशीर्वाद प्राप्त कर सकती हैं। दोस्तों महाशिवरात्रि के दिन। प्रातः काल जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर शिवलिंग पर जलाभिषेक करें और चंदन का तिलक लगाएं। 50 सफेद फूल, फल आदि चढ़ाएं और इस पूजा में अधूरा बेलपत्र का विशेष महत्व होता है। इसलिए शिवलिंग पर धतूरा और बेलपत्र और ओम नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जाप अवश्य करें। इसके बाद आप धूप दीप जलाकर भगवान शिवजी की आरती करें और विधिवत पूजा को संपर्क करें और पूरा दिन उपवास अवश्य रखें।इस दिन सुबह और प्रदोष काल में शिवजी की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। दोस्तों पूजा में रुद्राभिषेक का भी विशेष महत्व होता है। अगर संभव हो तो इस दिन पूरे परिवार के साथ रुद्राभिषेक आयोजन करें और इस दिन शिव। के पाठ में शिव पुराण शिव पंचाक्षर, शिव स्तुति, शिव अष्टक, शिव चालीसा और शिव रुद्राष्टक का पाठ करना अत्यंत लाभकारी रहता है ।

2023 में महाशिवरात्रि किस तारीख को पड़ेगी

2023 में महाशिवरात्रि कब है।

आपको बता दें कि महाशिवरात्रि का व्रत 18 फरवरी 2023 दिन शनिवार को रखा जाएगा और चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 18 फरवरी 2023 को रात 8:02 पर शुरू होगी और चतुर्दशी तिथि की समाप्ति 19 फरवरी 2023 की शाम को 4:18 पर हो जाएगी और इस दिन निशिता काल पूजा का समय रात 12:09 से लेकर रात 1:00 बजे तक रहेगा। इसके कुल अवधि 51 मिनट की रहेगी और महाशिवरात्रि व्रत पारण का समय 19 फरवरी सुबह 6:56 से लेकर दोपहर 3:24 तक रहेगा


महाशिवरात्रि पर निबंध


हमारा देश भारत त्योहारों का देश है | यहाँ होली, दिवाली, दशहरा, पोंगल, महाशिवरात्रि, क्रिसमस, ईद इत्यादि अनेक त्योहार मनाए जाते हैं | हम लोग यह सारे त्योहार धूमधाम से मनाते हैं | जैसा कि आप जानते हैं इस वर्ष 2022 में 1 मार्च को महाशिवरात्रि पड़ रही है //

 हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से यह त्योहार प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को अर्थात अमावस्या से एक दिन पहले वाली रात को मनाया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान शंकर रूद्र के रूप में प्रजापिता ब्रह्मा के शरीर से प्रकट हुए थे और इसी महाशिवरात्रि ( Essay on Mahashivratri in Hindi ) को भगवान शिव तांडव नृत्य करते हुए इस सृष्टि को अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से भष्म कर देंगे | कई स्थानों पर यह भी माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव का विवाह हुआ था | इन सब कारणों से महाशिवरात्रि की रात हिंदू धर्मग्रंथों में अतिमहत्त्वपूर्ण है |

भगवान शिव के नाम


शास्त्रों और पुराणों में भगवान शिव के अनेक नाम है जिसमे से 108 नाम तो मै यहाँ नही लिख सकता पर कुछ नाम जो आप सब भी जानते होंगे,भगवान शिव को शंकर,भोलेनाथ, पशुपति, त्रिनेत्र,पार्वतिनाथ आदि अनेक नामों से जाना व पुकारा जाता है।

शिवरात्रि का नाम किस प्रकार पड़ा


शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव सभी जीव-जन्तुओं के स्वामी एवं अधिनायक है। ये सभी जीव-जंतु, किट-पतंग भगवान शिव की इच्छा वसे ही सब प्रकार के कार्य तथा व्यापार किया करते है। 

शिव-पुराण के अनुसार भगवान शिव वर्ष में छ: मास कैलाश पर्वत पर रहकर तपस्या में लीन रहते है। उनके साथ ही सभी कीड़े-मकोड़े भी अपने बिलो मे बन्द हो जाते है।

 उसके बाद छः मास तक कैलाश पर्वत से उतर कर धरती पर श्मशान घाट में निवास किया करते है। इनके धरती पर अवतरण प्रायः फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हुआ करता है। अवतरण का यह महान दिन शिवभक्तों में “महाशिवरात्रि” के नाम से जाना जाता है।

शिवरात्रि का महत्व

महाशिवरात्रि के दिन शिव मंदिरों को बड़ी अच्छी तरह से सजाया जाता है। भक्तगण सारा दिन निराहार रहकर व्रत उपवास किया जाता है। 

अपनी सुविधा अनुसार सायंकाल में वे फल, बेर, दूध आदि लेकर शिव मंदिरों में जाते है। वहां दूध-मिश्रीत शुद्ध जल से शिवलिंग को स्नान कराते है। तत्पश्चात शिवलिंग पर फल, पुष्प व बेर तथा दूध भेंट स्वरुप चढ़ाया करते है। 

ऐसा करना बड़ा ही पुण्यदायक माना जाता है। इसके साथ ही भगवान शिव के वाहन नन्दी की भी इस रात बड़ी पूजा व सेवा की जाती है। महाशिवरात्रि के दिन गंगा-स्नान का भी विशेष महत्व है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने गंगा के तेज प्रवाह को अपनी जटाओं में धारण करके इस मृत्युलोक के उद्धार के लिए धीरे-धीरे धरती पर छोड़ा था।

शिवरात्रि त्योहार की कथा


पूर्वकाल में चित्रभानु नाम का एक शिकारी था। शिकार करके वो अपने परिवार को चलाता था। वो एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर नही चुका सका, क्रोधित सहुकार ने शिकारी को एक बार पकड़कर शिवमठ मेही बन्दी बना लिया। 

संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी बहुत ध्यान से शिव से जुड़ी सभी धार्मिक बाते सुन रहा था। चतुदर्शी को उसने शिवरात्रि व्रत कथा भी सुनी शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाकर ऋण चुकाने के बारे में पूछा तब शिकारी ने अगले दिन ऋण लौटाने का वचन देकर बन्धन मुक्त हो गया।

फिर दूसरे दिन अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल मे शिकार करने निकला। लेकिन दिनभर बंदी ग्रह में रहने के कारण वो भूख प्यास से व्याकुल होने लगा। शिकार खोजते हुए वो बहुत दूर निकल गया।

 जब अंधेरा होने लगा तो उसने सोचा की रात मुझे जंगल मे ही बितानी होँगी तभी उसे तलाब के किनारे बेल का पेड़ दिखा वो उस पेड़ पर चढ़कर रात बीतने के इंतजार करने लगा बेल के पेड़ के नीचे ही शिवलिंग था। 

जो बेलपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता भी नही चला पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ी वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गयी। इस प्रकार दिन भर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चड़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर तलाब के पास एक हिरणी आई शिकारी ने अपनी वाण उठाई और तानने लगा ही था, कि हिरणी ने कहा रुक जाओ में गर्भवती हु। 

तुम एक नही दो जान लोगे तुम्हे पाप लगेगा। तो शिकारी ने उसे छोड़ दिया और वाण अन्दर करते वक्त कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार शिकारी की पहली पहर की पूजा हो गयी।
थोड़ी देर बाद फिर एक हिरण आयी तब फिर शिकारी ने अपनी वाण तान दिया इस बार हिरणी ने कहा में अपने पति से मिलकर अभी आती हु तब तू मुझे मार देना शिकारी फिर वाण अंदर करते वक्त कुछ बेल पत्र फिर शिवलिंग पर गिर गए।

 शिकारी की दूसरे पहर की भी पूजा हो गयी। इस प्रका शिकारी की तीनों पहर की पूजा किसी ना किसी कारण से पूरी हो गयी। उसके इस प्रकार भूखे रखने की बजह से उसका व्रत हो गया और शिकार के बहाने उसकी पूजा हो गयी साथ ही जागरण भी हो गया। उसके इस तरह शिव जी पूजा से मोक्ष प्राप्त हुआ और जब उसकी मृतु हुई तो उसे यमलोक ले जाया जा रहा था।

 कि शिवगणों ने उसे शिवलोक भेज दिया। शिव जी की कृपा से अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म की याद रख पाया तथा महाशिवरात्रि को महत्व को पूजन कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।

शिकारी की कथानुसार महादेव तो अनजाने में किये गए व्रत का भी फल दे देते है अर्थात भगवान शिव शिकारी की दयाभाव से अधिक प्रसन्न हुए थे। अपने परिवार का कष्टों को ध्यान रखते हुए भी उसने दयाभाव दिखाया और शिकार को जाने दिया उसके इस प्रकार दया दिखाने से उसे पंडित और पुजारियों से ज्यादा उत्कृष्ठ बनाती है। 

जो सिर्फ रात्रि जागरण,उपवास एवं दूध,दही,बेलपत्र आदि द्वारा शिव को प्रसन्न कर लेना चाहते है। पर मन मे कोई दया भाव नही रखते है। इस कथानुसार अनजाने में हुई पूजा का महत्व अत्यधिक है। इससे ज्यादा मन मे दयाभाव रखना भी महत्वपूर्ण है।

उपसंहार 


इस प्रकार महाशिवरात्रि के दिन जो व्यक्ति दया भाव दिखाते हुए शिव जी की पूजा करते है। उसे मोक्ष प्राप्त होता है। वैसे भी भोलेनाथ शिव जी को जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता के रूप में भी माना जाता है। जिनका पूजन पूरे भारत देश मे हर्षउल्लाश के साथ मनाया जाता है। जो कि शिव जी की रात यानी शिवरात्रि कहलाती है। इसलिए हमें भी हमारे मन मे दया आदि का भाव रखते हुए शिव उपासना करनी चाहिए और शिव जी से हमारे सभी कष्टों को खत्म करने की विनती करनी चाहिए।
दोस्तों यह जानकारी आपको। अच्छे लगी तो कमेंट बॉक्स में। कमेंट जरूर करे और अगर आपका कोई सवाल हो तो उसे कमेंट बॉक्स में कमेंट करे ।
2021 में शिवरात्रि कब है



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