नमस्कार दोस्तों आप सभी को स्वागत है आज का इस New Post के साथ जिसका title है।हमारे कितने जन्म होते हैं।इंसान के कितने जन्म होते हैं। अगर आपका भी मन में यह उठ रहा है तो इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़े।
हमारे कितने जन्म होते हैं? इंसान के कितने जन्म होते हैं?
दोस्तो हमारे कितने जन्म हो चुके हैं और हमारी आगे कितनी जन्म होने वाले हैं। क्या हमारा जन्म पहले से ही निर्धारित होता है। आखिर एक आत्मा को कितनी बार भौतिक शरीर मिलता है। यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब हमें कहीं नहीं मिलता, लेकिन आपको नहीं लगता। यह सवाल तो हमारी जीवन का सबसे कठिन और महत्वपूर्ण सवाल है जिसका जवाब हमें जरूर ही पता होना चाहिए तो आज इस पोस्ट में हम आपको इस सवाल का जवाब अपने धर्म ग्रंथों से ढूंढ कर देगी तो पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें।।
दोस्तो अगर हम अपने वेदों और पुराणों का अध्ययन करें तो साधारण तय से हमें यह पता लगेगा की आत्मा को 84 लाक योनियों से गुजरना पड़ता है जिसमें हमें पिछले जन्म के आधार पर अगले जन्म में अंतर का आभास होता है। लेकिन इसी के साथ ही यह भी बताया जाता है कि हमारा। कार्य बार-बार जन्म लेना नहीं बल्कि इस जन्म और मृत्यु के चक्र से बाहर निकलना होता है। यानी मोक्ष को पाना इसमें भी हमारे मन में कई सवाल उत्पन्न हो जाते हैं।
अगर आत्मा अमर होती है और शरीर बदलती है तो क्या 84 लाक योनियों भोगने के बाद आत्मा का भी अंत होता है। आखिर मोक्ष को पाकर आत्मा को कौन सा शरीर मिलता है।।
मरने के बाद आत्मा का क्या होता है
तो दोस्तो यह सब को समझने की कोशिश करते हैं। हम अपनी सृष्टि को समय की धारा में बहती हुई मानते हैं। यानी हमारी सृष्टि की रचना हुई जो करोड़ों वर्ष पहले घटित हो चुका है और इसका अंत भी होगा। लेकिन अगर हम समय से बाहर देखें तो हमारी सृष्टि की रचना और अंत एक ही क्षण में हुआ।
हम सिर्फ समय के कारण इसको होता हुआ महसूस कर रहे हैं। उदाहरण के लिए हम अपने भौतिक आयाम पहले भी कई पोस्ट में समझा चुके हैं ऊपर नीचे होना पहला आयाम। दाई बाई होना दूसरा आयाम है। टीवी भी यही दो आयामी होता है।
इसी तरह हम आगे पीछे हो सकते हैं। इसलिए हमारी सृष्टि को 3D कहा जाता है। समय वह चौथा आयाम है जो हमें सिर्फ आगे बढ़ता हुआ महसूस होता है। हमारी आत्मा को भौतिक शरीर मिलता है जो इस चौथे आयाम को बढ़ता हुआ ही महसूस कर सकता है।
परंतु शरीर से अलग होकर आत्मा पांचवे यायाम में जाती है। जिस कारण उसे चौथा आयाम पूर्ण नजर आना शुरू हो जाता है। आप ही सोचिए हम सृष्टि की रचना और अंत का भी अनुभव कर सकते हैं।
जब हम इसे एक धारा में बहता हुआ पाई , लेकिन समय से बाहर तो शुरुआत और अंत एक समान ही नजर आएंगे। इसी कारण कहा जाता है कि सब कुछ पहले ही लिखा जा चुका है। हम इसे कह सकते हैं कि सब कुछ पहले ही घटित हो चुका है हम सिर्फ एक पात्र। की तरह किरदार निभा रहे हैं।
इसी कारण हमारी जन्मों को भी पहले ही बताया जाता है। हम इसमें अगर अपना मानसिक स्तर बढ़ा बातें हैं तो हम जन्म और मृत्यु से बाहर आ जाते हैं। हमारी ग्रंथों में यह भी बताया गया है कि एक आत्मा का शरीर जीवित ही नहीं निर्जीव भी हो सकता है।
रेत की लाखों करो कि एक आत्मा भी हो सकती है और एक पर्वत की लाख को आत्मा भी लेकिन इंसानी शरीर को सबसे उत्तम कहा गया है क्योंकि इसका स्तर मोक्ष पाने के लिए सबसे ज्यादा ज्ञान का प्रसार कर सकता है। आत्मा सिर्फ एक ज्ञान स्वरूप है जो परब्रह्म से निकलकर उसमें ही समा जाती है। जैसे समंदर की एक बूंद कभी ना कभी दोबारा समंदर में ही मिल जाती है। मोक्ष का अर्थ सिर्फ भौतिक शरीर से हमेशा के लिए मुक्ति ही नहीं बल्कि तीन आयामी और रुकावट यानी भावनाओं से मुक्ति भी होती है।
दोस्तों अगर आप का अभी कोई सवाल हो तो उसे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
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