Friday 9 June 2023

शरीर में आत्मा कहां रहती है |आत्मा शरीर में कहां निवास करती है

 नमस्कार दोस्तों आप सब केसे है दोस्तो आज की इस पोस्ट में हम जानने वाले है की शरीर में आत्मा कहां रहती है । आत्मा शरीर में कहां रहती है। आत्मा शरीर में कहां निवास करती है । दोस्तो अगर आप भी जानना चाहते हैं तो इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़े ।

शरीर में आत्मा कहां रहती है |आत्मा शरीर में कहां निवास करती है

शरीर में आत्मा कहां रहती है |आत्मा शरीर में कहां निवास करती है  

दोस्तो कुछ  ऐसे विषय हैं जिनको लेकर विज्ञान और अध्यात्म में हमेशा से मतभेद बना रहता है। उन्ही में से एक प्रमुख विषय है। आत्मा का एक और विज्ञान जहां इस पर अभी तक कोई निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया और उसका शोध जारी है। 

वही हिंदू के पुराणों में से एक गरुड़ पुराण में इसका वर्णन क्रमवार तरीके से  बताया गया है। जैसे आत्मा होती क्या है उसको मुक्ति कैसे मिलती है, वह पर लोग कब जाती है। इसी से जुड़ा एक और प्रश्न है कि आखिर शरीर का वह कौन सा अंग है जहां आत्मा रहती है, 

तो दोस्तो इस  पोस्ट में जानते हैं। इस प्रश्न का उत्तर गरुड़ पुराण के अनुसार जीवन मृत्यु के अद्भुत रहस्य को बहुत ही सरल तरीके और सुव्यवस्थित ढंग से समझाने की कोशिश की गई है। यही नहीं सनातन धर्म में मृत्यु पश्चात इस पुराण को सुनने का प्रावधान भी है। 

दोस्तो मां के गर्भ धारण करने के बाद माता-पिता के भाव के अनुकूल उनके आसपास एक सुख स्पंदन वाला स्थान  बन जाता है। यह स्थान उसी आत्मा को अपनी ओर खींचता है जिसका स्तर इन दोनों से मेल खाता हो

आकर्षित आत्मा मां के गर्भ  आसपास घूमना शुरू कर देती है और अपनी शक्ति लगाने लगती है। अभी है आत्मा जीव को शो के विभाजन की गति को बढ़ा देती है। इस दौरान जिस महत्वपूर्ण अंग का सबसे पहले गठन होता है तो वह वह हृदय  है। फिर धीरे-धीरे इसी से अन्य अंगों का विकास भी शुरू हो जाता है। जब रूम निर्मित हो जाता है और फिर का गठन अच्छे हो जाता है तो इसके बाद ब्रह्मरंध्र का निर्माण होता है। रणधर एक संस्कृत शब्द है। ब्रह्मरंध्र वास्तव में मस्तिष्क की वजह सर्वोच्च जगह होती है जहां पर कुंडली। योग से नियमित अभ्यास से दबाव बढ़ता रहता है और वहां कुंडलिनी चित्र पोस्ट होता रहता है।

 यह शरीर में वह स्थान है जिसके माध्यम से जीवन तरुण में उतरता है। इसका उल्लेख गर्ग संहिता में मिलता है। जिस क्षण ब्रह्मरंध्र पूरी तरह से सुरक्षित हो जाता है। तब  आत्मा उसी बारे में दूसरी और प्रवेश करती है और यह पूर्ण के विकसित होने की तीन माह के अंतर्गत ही होता है। 

आत्मा शरीर में कहां निवास करती है  > हृदय में 

दोस्तो  एक महत्वपूर्ण बात आपको बता दें कि महायोगी लोग उसी स्थान पर ध्यान केंद्रित कर के प्राण निकालकर मुक्त हो जाते हैं। वस्तम में  आत्मा का बास हृदय  में होता है। यही वह स्थान है जहां आत्मा रहती है और हृदय के माध्यम से ही वह हमारे तंत्र की सभी चक्रों और साथ ही सभी आयामों तक पहुंच जिनका हम अनुभव नहीं कर पाते। हमें बहुत से बहुत एक और सूक्ष्म आयामों को तय करना होता है। जब हमारी यात्रा हृदय से शुरू होती है तो उसका अर्थ है कि अब आत्मा की ऊर्जा। ऊपर की तरफ चलने लगी है वह आत्मा जो हमारे हृदय में रहती है वहीं से उर्जा बिना किसी बाधा के सारे चक्रों तक पहुंचती है। 

शरीर में 114 चक्र हैं जिनमें से अंतिम दो चक्र शरीर के बाहर स्थित है। यदि आपकी बहुत एकता से परे एक आयाम आपके भीतर एक निरंतर सकरी प्रक्रिया बन जाता है तो कुछ समय बाद यह तो चक्र जो आमतौर पर निष्क्रिय होते हैं, सक्रिय हो जाते हैं। यदि वे सक्रिय हो जाते हैं तो आपके सिर पर एक एंटीना होता है जो आपको जीवन का एक निश्चित दृष्टिकोण देता है। किसी के साथ आपको यह भी बता दें कि ब्रह्म उपनिषद में आत्मा की तीन अवस्थाएं बताई गई है। जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति और तुरीय अवस्था जागृत अवस्था में जीवात्मा का बास आंखों के बिच   स्वप्न अवस्था में कंठ में और सुषुप्ति अवस्था में हृदय में होता है।

जैसे सूर्य की जगह रहता है और उसका प्रकाश दूर तक फैला रहता है। उसी तरह जीवात्मा का बास एक ही जगह होता है और उसकी चेतन धार पूरे शरीर में बिक्री होती है। दुरिए अवस्था  के बारे में आदि गुरु शंकराचार्य ने बताया है कि इस अवस्था में सभी कृषि तथा ज्ञान का विलय हो जाता है। केवल परब्रह्मा के समान निर्विकल्प निर्विचार 

इस स्थिति में सभी विकल्प समाप्त होकर केवल ज्ञान ही शेष रह जाता है। यही जीवात्मा की मुक्त अवस्था है। ऐसी अवस्था में पहुंचने के लिए घड़ी साधना की जरूरत पड़ती है। इस अवस्था को प्राप्त करना साधारण मनुष्य की बस के बाहर है।


दोस्तो  उम्मीद करते हैं आपको सवाल का जवाब समझने में आसानी हुई। आत्मा का बास शरीर में किस स्थान पर होता है जो आपको हमारी याद की पोस्ट कैसी लगी नीचे कमेंट करके जरूर।

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