Friday 9 June 2023

मृत्यु के बाद आत्मा कितने दिन घर में रहती है।

 हेलो दोस्तो आज की इस पोस्ट में हम जानने वाले हैं कि ! मृत्यु के बाद आत्मा कितने दिन घर में रहती है | अगर आपके मन भी यह सवाल आ रहा है आ तो आप इसके बारे में जानना चाहते है तो कोई आप नही अपको इस पोस्ट पूरी विस्तार से अपको जानकारी मिलने वाले हैं तो आप इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़े| 

मृत्यु के बाद आत्मा कितने दिन घर में रहती है।

मृत्यु के बाद आत्मा कितने दिन घर में रहती है।  


दोस्तो गरूड़ पुराण में हमे मानुष्य के जीवन और मरण से संबंध ऐसे कई रहस्यों के बारे में जनने को मिलता है जिन्हे जानकर कोई व्यक्ति अपने जीवन को गति को सुधार सकता है ।


दोस्तो हम भी अपको समय समय पर इस अनमोल ज्ञान की कोई परोस्तितीय हम लेकर इस वेबसाइट पर आते रहते है ,इसी कड़ी में आज हम जानेंगे ,  मृत्यु के बाद आत्मा कितने दिन घर में रहती है।  दोस्तो अगर आप ने भी कभी किसी की आत्मा उपस्थिति का आवास क्या है तो मुमकिन है की आपके कोई कल्पना नही बल्कि सच हो !दोस्तों क्या है हमारे धर्म शास्त्रों का कहना जानने वाले हैं आज की पोस्ट में 


दोस्तो यह तो आपको पता ही होगा की गरूड़ पुराण वैष्णव संप्रदाय से संबंधित है। साथ ही ये भी इस पुराण के I अभिषस्ता ने कोई और नही बल्कि इस सीसटी के पालन करता सोयम भगवन विष्णु है इसके अंतर गत  सनातन धर्म में मृत्यु के बाद सतगति किस प्रकार मिलती हैं और मृत्यु के बाद क्या क्या होता है ऐसे ही कई रहस्यों का बिस्तरत रूप से सवावेस्का क्या गया है ?

 


दोस्तो गरूड़ पुराण के पहले ही अध्याय में यस्पस्त रुप से वर्णन मिलता है मृत्यु के बाद आत्मा को लेने आए अमदूत केवल 24 घंटो के लिए ही उस जीव आत्मा को लेकर जाते है ।


और इन 24 घंटो के दौरान आत्मा को सम्पूर्ण जीवन लिखा धोखा दिखाया जाता है जिसमे यह हिसाब होता है की उस जीव आत्मा ने अपने जीवन के दौरान कितने पाप और कितने पुन्य किए है 


इसके बाद आत्मा को फिर मृत्यु के घर में जाकर छोड़ देता है जहा उसने शरीर का तयाग क्या था जिसके 13 दिन बाद आत्मा वही रहती है और 13 दिन बीत जाने के बाद उस आत्मा को पुणे अमलोक ले जाया जाता है


दोस्तो गरूड़ पुराण में इसका विस्तार रूप से वर्णन कुछ इस प्रकार किया गया है 


दोस्तो जो व्यक्ति मृत्यु के निकट होता है तब उसे मरणासन्न गादी  के समाने दोनो हाथों में रासी  और दंड धारण और दातों को कट कट आते हुए क्रोध से भरे दो भयंकर दूत आते हैं उनके केस ऊपर को और रूठे हुए होते हैं और वह कोयले की सामान काले होते हैं अरे तेरे चेहरे वाले। किसी हथियार की तरह नुखोले होते हैं उन्हें देखकर अभिभूत हुआ वह कमजोर हिर्दे वाला मरणासन्न पर वह अपना स्थान पर ही मरने का विसर्जन करने लगता है वह अपने भौतिक शरीर से हाय हाय काफिला करते हुए निकलता है



दोस्तों यह आपको पहले ही बता चुके हैं की मरणासन्न गादी की शरीर से आगुंश मात्र अर्थात   अंगूठे के बराबर एक आत्मा निकलती है और आगुंस्ट मात्र निकले यह आत्मा अब उन्हे अमदूतो दुबारा पकड़ लिए जाते है यो अपने घर की तरह जाना चाहते है लेकिन अमदूतो के द्वारा । सुदूर यम मार्ग में ले जाता है ।


जहा उसे अनेक कास्ट उन आत्मा को भोगना पड़ता है यह बिलकुल उसी प्रकार होते है जेसे कोई राजपूत किसी अफरादी को दंड लिए लेकर जाते है ।


यो अमदुत पूरे रास्ते उसे जीव आत्मा को डराते रहते है साथ ही नृग में मिलने वाले दंड का बार बार वर्ण कर के उशे भयभीत करने की कोशिश करते है 



दोस्तो इस प्रकार अमदुतो के बाद तथा बंधु बंधुओं का रूलन सुलटा हुआ वह जीव जोर जोर से बिलाफ करता है लेकिन अमदूत बर्डरता से उसे अटनाए देते रहते है अमदूतो के तर्जनायों से उसका हिरदे फट रहा होता है यो डर से कांपने लगता है । उसे रास्ते में खुंगखर कुत्ते सांप बिच्छू आदि कटते है इस तरह अपने पापो को आद करता हुआ यो पीड़ित व्यक्ति अम्मार्क में चलता जाता है । भूख और प्यास से उसे जीव आत्मा को अमदूतो द्वारा दिए है गई भेट पर घोड़े भी मारे जाते है उसे तब तक कठिन मार्क पर  रखता है नही तो जी बात पर विश्राम कर सकती है और ना ही उसे पीने को पानी मिलता है।



वह कर्म हर जगह जगह गिरता है और मूर्छित होने के बाद फिर होश में आकर अंधकार पूनम यम लोक की ओर बढ़ता जाता है 


बताया गया कि दो अथवा तीन हम लोग पहुंच जाता है उसके बाद मिलने वाली सजा घोर आत्मीय दिखाते हैं फिर एक मुहूर्त पार्क में यम को और नरग में मिलने वाली आदमियों देखने के बाद वह व्यक्ति यम की आज्ञा पाकर पूरे आकाश मार्ग से होता हुआ हम दूतों के साथ पृथ्वी लोक में चला आता है मनुष्य लोक में आकर हो और वासना से बना हुआ देह में प्रवेश करना चाहता है किंतु यमदूतों  द्वारा उसे रस्सी से बांध दिया जाता है ताकि वह कुछ भी कर पाना संभव है वह अपने परिवार को रिश्तेदारों दोस्तों को हर कोई उसकी मृत्यु का शोक मनाते हुए देखते हैं वह अपने रिश्तेदारों को चुप कराने का प्रयास भी करते हैं लेकिन उसकी वहां उपस्थिति का किसी का भी ज्ञान नहीं होता है


फिर सामने खुद का शरीर देखते हुए प्रभु क्या से पीड़ित यह आत्मा उच्च उच्च स्वर में ब्लॉक करने लगते हैं 


साथ ही मित्रों बताया गया है की वह पापी प्लांट अतुल काल में दिया दान को करने के बाद तृतीय अर्थात शांति को प्राप्त नहीं करता क्योंकि उसके पापों की संख्या इन पुण्य कर्मों से कहीं बड़ी होती है मित्रों इसी लिए पिंडदान किया जाना आवश्यक बताया गया है क्योंकि इस  पिंडदान माध्यम से ही आत्मा को शांति मिलता है 


दोस्तों कहा जाता है कि जिन का पिंडदान नहीं होता वह प्रेत रूप में होकर कई कालों में निर्जन होकर रहते है सैकड़ों करोड़ साल बीत जाने पर बिना भोग किए इतना पीड़ा को सहने के बाद भी उसके कर्म फल का नाश नहीं होता और जब तक वह पाप अपने हिस्से में आई हो जीवात्मा को मनुष्य शरीर में प्राप्त नहीं होता इसीलिए तो पिंडदान किस महानता को समझते हुए पुत्र को चाहिए कि वह 10 दिनों तक प्रतिदिन पिंड दान करें 

गरुड़ पुराण में वर्णन के अनुसार प्रतिदिन चार भागों में विभक्त होते हैं उनमें से दो बात तो प्रेत की देवकी पंच मुद्दों के लिए होते हैं तीसरा भाग अमृता को प्राप्त होता है और चौथे भाग से वह जीव को आधार प्राप्त होता है 9 दिनों में पिंड को प्राप्त करके उस प्रेत का शरीर बन जाता है और दसवें दिन उसमें बल की प्राप्ति होती है 


साथी मित्रों यह भी बताया गया है कि मृत व्यक्ति के जल जाने पर पिंडदान कि उसे एक हाथ लंबा शरीर प्राप्त होता है जिससे द्वारा यह पुरानी यामलोग के द्वारा मैं अपने शुभ और अशुभ फल को भोगता है 


पहले दिन जो पिंड दिया जाता है उससे उसका शरीर बनता है दूसरे दिन के पिंड से गर्दन शरीर और पैर बनता है तथा तीसरे पिंड से हृदय बनता है चौथे पिंड से पीछे का भाग बनता है और पांचवे सेना भी बनता है पांचवें और छठे पेंट से कमर और जांघ बनता है आठवीं और नौवीं पेंट से फूटने तथा ना से बनते हैं इस प्रकार सभी प्रिंट से प्राप्त करके उसके भूख और प्यास जागृत होते हैं इसी स्पीड से सब कुछ प्राप्त करके वह जीवात्मा को 11वीं और 12वीं पूजन करती है और 13 दिन यमलोग के द्वार चले जाते हैं

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