Wednesday 17 August 2022

chhath puja kab hai 2022 ? 2022 में छठ पूजा कब है? बिहार में 2022 में छठ पूजा कब है

   मस्कार दोस्तों आप सभी को स्वागत है आज का इस New Post  के साथ जिसका title हैै।chhath puja kab hai।2022 में छठ पूजा कब है।2022 में छठ पूजा कितने तारीख को है। दोस्तो अगार आप भी जानना चाहते हैं तो इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़े
 क्या इंसान गायब हो सकता है 

2022 में छठ पूजा कब है।chhath puja kab hai

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chhath puja kab hai ? 2022 में छठ पूजा कब है? 2022 में छठ पूजा कितने तारीख को है 

छठ पूजा क्यों मनाया जाता है

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दोस्तों छठ पूजा का महापर्व जो पूरे 4 दिनों तक चलता है। इस पर्व का मुख्य दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होता है, लेकिन इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी से हो जाती है। यह व्रत बहुत ही कठिन है जिसमें 36 घंटों तक निर्जला व्रत रखा जाता है और पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देना होता है। छठ पूजा के दौरान कथा सुनना बहुत ही जरूरी होता है क्योंकि बिना कथा के व्रत का फल पूरा नहीं मिलता है। 

चलिए आज हम सुनेंगे छठ पूजा की कथा जो इस प्रकार है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक राजा प्रियंवाद को कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यंग। कराकर प्रियंवाद की पत्नी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई थी। यदि इससे उन्हें पुत्र तो हुआ लेकिन वह मृत पैदा हुआ। प्रिय मित्र को लेकर संतान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुए और उन्होंने कहा, सृष्टि के मूल प्रवृत्ति के अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं सृष्टि कहलाते हैं। 

राजन तुम मेरी पूजा करो और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इससे देवी सती का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। 

दोस्तों एक दूसरी कथा के अनुसार ऐसी मान्यता है कि लंका पर विजय पाने के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्य देव की। सप्तमी को सूर्योदय के वक्त फिर से अनुष्ठान कर शुरू से आशीर्वाद प्राप्त किया। एक अन्य कथा के मुताबिक छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी

सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य देव को देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में प्रदान करने की यही परंपरा चली आ रही है। 

दोस्तों छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इसके अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। उनकी मनोकामनाएं पूरी हुई और पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मैया का संबंध भाई बहन का है। 

इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की। आराधना बेहद फलदाई मानी गई है। आपको बता दें कि सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चेत्र में और दूसरी बार कार्तिक में चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ को चैती छठ व कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठी को मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिक की छत कहा जाता है। 

परिवार के सुख समृद्धि तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को स्त्री और पुरुष सामान्य रूप से मनाते हैं। छठ पूजा का पर्व चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी से लेकर कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी को होती है। 

इस दौरान व्रत रखने वाला व्यक्ति लगातार 36 घंटों का व्रत रखता है। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं कर सकते हैं। आपको बता दें कि छठ पर्व बांस निरमित शो। टोकरी मिट्टी के बर्तनों गन्ने के रस गुण, चावल और गेहूं से निर्मित प्रसाद और मधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोग जीवन की भरपूर मिठास का प्रचार करता है। 

यह मुख्य रूप से पूरी भारत के बिहार झारखंड पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के क्षेत्रों में मनाया जाता है। सस्ती को मनाया जाने वाला छठ पूजा सूर्य उपासना का महापर्व है और साथ ही इस दिन छठी मैया की भी पूजा की जाती है और उनसे सुख समृद्धि और खुशहाली का आशीर्वाद मांगा जाता है तो बोलो छठी मैया की जय तो दोस्तों यह जानकारी आपको अच्छी लगे तो कमेंट में जय छठमायाकी ।जरूर लिखें और अगर आपका कोई सवाल हो तो उसे कमेंट बॉक्स।

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साल 2022 में छठ पूजा कब है

मित्रों साल 2022 में छठ पूजा कब मनाया जाएगा। पूजा करने की विधि क्या होगी और छठ पूजा करने की सामग्री क्या है और नहाए खाए कब होगा? व्रत का पारण कब किया जाएगा? जानेंगे इस पोस्ट में। 

 मित्रो छठ पूजा हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल सृष्टि  को मनाए जाने वाला महापर्व है इस पर्व को सूर्य षष्टि के नाम से भी जाना जाता है और यह पर्व दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाता है

 यह पर्व मुख्य रूप से उत्तर भारत के। बिहार झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। छठ पूजा में सूर्यदेव और सृष्टि मैया की पूजा वह इन्हें यर्ग देने का विधान  मान्यता है कि छठ पूजा से पुत्र की प्राप्ति होती है  और छठ पूजा 4 दिनों तक चलने वाला पर्व है ।

 छठ पूजा के पहले दिन

 जिसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है और कार्तिक शुक्ल सप्तमी को इस पर्व का समापन होता है। छठ पूजा के पहले दिन नहाए खाय का होता है इस दिन स्नान  करने के बाद घर की साफ सफाई की जाती है और मन को तामसिक प्रवृत्ति। से बचाने के लिए शाकाहारी भोजन किया जाता है।

छठ पूजा के दूसरे दिन 

छठ पूजा के दूसरे दिन खरना कहलाता है पूरा दिन उपवास रखा जाता है इस दिन व्रत रखने वाला व्यक्ति जेंट्स हो या महिला जल की एक बूंद तक गर्म नहीं करता है और संध्या के समय गुड की खीर घी लगी हुई रोटी और फलों का  सेवन करते है और साथ ही बाकी सदस्य को इसे प्रसाद के तौर पर दिया जाता है

छठ पूजा के तीसरे दिन

 और छठ पूजा के तीसरे दिन संध्या को सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है  और शाम को बास की टोकरी में ठेकुआ चावल के लड्डू यह सब सजाया जाता हैं जिसके बाद में परती सद्स्य परिवार के साथ भगवान सूर्य देव को अरग देते हैं और आर्ग देने के समय जालौर दूध चढ़ाया जाता है। और प्रसाद भरे शुभ को छठ मैया की पूजा किया जाता है सूर्य देव के उपासना के बाद छठ मैया की गीत गाया जाता हैं।

छठ पूजा के चौथे दिन

छठ पूजा के चौथे दिन सुबह का आर्ग भगवान सूर्य देव को दिया जाता है। इसदिन सुभह सूर्युदेय से पहले नदी के घाट पर  पहुंच कर उगते हूई सूर्यको आर्ग देते हैं।इसके बाद छठ माता से संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख-शांति वर मांगा जाता है।

2022 में छठ पूजा कितने तारीख को है

 मित्रों आपको बता दें कि साल 2022 में छठ पूजा 30 अक्टूबर दिन रविवार को मनाया जाएग

नहाय खाय 

 28 अक्टूबर 2022 दिन शुक्रवार को होगा।

खारना या लोहंडा 


छठ पूजा का महत्त्व

छठ पूजा हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला एक बड़ा त्यौहार है। इसमें सूर्य भगवान का पूजन किया जाता है। ये पर्व पूर्वी भारत जैसे बिहार, जहरखांड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में भी मनाया जाता है। छठ एक प्राचीन हिन्दू वैदिक उत्सव है जो भगवान सूर्य और देवी छथि को समर्पित है। यह चार दिन का उत्सव होता है जो कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल सप्तमी को समाप्त होता है। पृथ्वी पर जीवन बनाए रखने के लिए भगवान सूर्य का धन्यवाद करने के लिए यह पूजा किया जाता है। महिलाये भहगवां सूर्य और माता छथि का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस दिन उपवास रखती है। इस दिन सुख-समृद्धि और प्रगति की प्राप्ति के लिए भगवान सूर्य का पूजा किया जाता है। सूर्य को लौकिक देवता और ऊर्जा और जीवन शक्ति के प्रदाता के रूप में माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। 

छठ पूजा क्यों मनाया जाता है (chhath puja kyu manaya jata hai)

पुराणों के अनुसार छठ पूजा की शुरुआत रामायण के दौरान हुई थी। रावण का वध कर जब प्रभु रम अयोध्या लौटे तब उह्नोने इस उपवास का पालन किया था। ऐसा भी मानते है की कर्ण जो सूर्यदेव के पुत्र है व सत्य भगवान के परम भक्त थे और पानी में घंटो खड़े रहकर अर्घ्य देते थे। पांडुओं के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए द्रोपती भी सूर्यदेव  कराती थी कहते है की उसकी इसी श्रध्या के कारण पांडुओं को अपना राज्य फिर से मिला 

छठ पूजा का इतिहास

इस पर्व से जुडी एक और कहानी प्रचलित है। राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी निःसंतान थे । जिस कारण वह बहुत दुःखी थे। तब महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्र कामेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। जब उन्होंने यह यज्ञ किया तब महर्षि कश्यप ने यज्ञ के प्रसाद के रूप में रानी मालिनी को खीर खाने को दी। कुछ समय पश्चात् ही राजा और रानी को पुत्र की प्राप्ति हुई। लेकिन उनकी किस्मत इतनी खराब थी की वह बच्चा मृत अवस्था में पैदा हुआ। राजा जब अपने पुत्र का मृत दे लेकर शमसान गए और उन्होंने अपने प्राणो की ही आहुति देनी चाही तभी उनके सामने देवसेना यानि की छठ देवी वहाँ पर प्रकट हुई। जिन्हे षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।

उन्होंने राजा को बताया की अगर कोई सच्चे मन से विधिवत उनकी पूजा करे तो उस व्यक्ति के मन की इच्छा पूरी होती है। देवी ने राजा को उनकी पूजा करने की सलाह दी। इस बात को सुनकर राजा ने देवी षष्ठी की सच्चे मन से पूजा की और व्रत कर उन्हें प्रसन्न किया। राजा से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्र प्राप्ति वरदान दिया। कहते है की राजा ने जिस दिन वह पूजा की थी वह कार्तिक शुक्ल षष्ठी का दिन था और उस दिन से आज तक इस पूजा की प्रथा चलती आ रही है।


छठ पूजा सामग्री

केले के पत्ते, गन्ने, कुछ फल, केले, इलाइची, लौंग, हल्दी कुमकुम लगे अक्षत, कपूर, सिंदूर, हल्दी पौधा सहित, घी का एक छोटा दिया, एक कटोरी में दूध, जल पात्र, कलश, पूजा के लिए पान के पत्ते, कच्चे धागे से बनी एक माला, सुपारी, अगरबत्ती, धुप, कुछ मेवे, मूली पत्तों के साथ, एक सूप और एक टोकरी, घंटी, भोग के लिए रोटी, चने की दाल, खीर, लौकी की सब्जी और ठेकुआ, इसके साथ छठ पूजा की कथा पुस्तक और एक थाली में दही, छुट्टे फूल, पूजा का नारियल और एक चौकी। 

छठ पूजा नियम 

वैज्ञानिक और ज्योतिषी दोनों ही दृष्टिकोण दे छठ पर्व बेहद महत्वपूर्ण होता है। सूर्य के प्रकाश में कई रोगो को नष्ट करने की क्षमता होती है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को आरोग्य और तेज की प्राप्ति होती है। छठ पूजा का व्रत करने वाले व्यक्ति इस पर्व के चारो दिन साफ स्वच्छ कपड़े पहनने चाहिए। इस व्रत के नियमो के अनुसार व्रत करने वाले व्यक्ति और घर के सदस्यों को सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। पूजा के लिए बांस से बने टोकरी और सूप इस्तेमाल करना चाहिए

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